Monday, December 19, 2016

पांच मूर्खों की तलाश बनाम अफलातून को सबक सिखाओ..

पांच मूर्खों की तलाश बनाम अफलातून को सबक सिखाओ  

एक आधुनिक व्यंग्य बोध कथा

रोज की तरह शाम होते ही बच्चे दद्दू को कहानी सुनने के लिए घेर कर बैठ गये| दद्दू गला साफ़ करने के बाद कहानी शुरू करते, उसके पहले ही अनी बोली, दद्दू हम रोज रोज वही अकबर-बीरबल, राजा कृष्णचन्द्र और तेनाली राम, बेताल की कहानियाँ सुनते सुनते बोर हो गए हैं| आज तो आपको कोई नई कहानी सुनानी पड़ेगी| अनी की बात के समर्थन में गरदन हिलाते हुए सोना और माही भी बोलीं, हाँ, दद्दू एकदम लेटेस्ट| धवल, अयन भी कहने लगे, हाँ, दद्दू एकदम लेटेस्ट| दद्दू ने आँख बंद करके कुछ देर सोचा और फिर कहा, अच्छा आज तुम्हें एकदम लेटेस्ट कहानी सुनाता हूँ| दद्दू ने एकबार फिर गला साफ़ किया और कहानी शुरू की| एकदम लेटस्ट बात है, हमारे ही देश में करीब ढाई वर्ष पूर्व एक व्यक्ति एक पन्त का प्रधान चुना गया| अब तुम लोग तो जानते ही हो कि चुनाव के पूर्व नेताओं को आम जनता को अपने पक्ष में करने के लिए कितने वायदे करने पड़ते हैं और विरोधियों के कामों का बुरा बताकर उनका कितना मजाक बनाना पड़ता है| उस पन्त प्रधान ने भी देश का प्रधान बनने के लिए अपने विरोधियों के कामों की बहुत बुराई की और उनके कामों का बहुत मजाक बनाया| माही ने सर हिलाते हुए कहा, हाँ, दद्दू और बाद में ऐसे नेता अपने वायदे भूल जाते हैं और जो मर्जी में आये करते हैं| अब नोटबंदी को ही देखो, हमारे पापा को कितना परेशान होना पड़ रहा है| हाँ, दद्दू ने कहा, पर, इस कहानी का नोटबंदी से कोई संबंध नहीं है, इसलिए आगे कोई टोका-टोकी न करना| ठीक है दद्दू, सभी बच्चे एक साथ बोले|

दद्दू ने फिर से गला साफ़ करते हुए कहानी आगे बढ़ाई| तो, जैसा कि चुनावों के समय में होता है, उस पन्त प्रधान ने भी अपने को सबसे अधिक होशियार और श्रेष्ठ बताने के लिए ऐसी ऐसी बातें कहीं, जिन पर मूर्ख ही भरोसा कर सकते थे| उस दौरान, उसने दूसरे देशों के बारे में और अपने देश के बारे में ऐसी कई बातें कहीं, जो पूरी तरह गलत और झूठी थीं| पर, देश में ऐसे भी अनेक लोग थे, जिन्हें वह जादूगर जैसा लगता था और उन्हें लगता था, जो वह कह रहा है, वैसा हो सकता है| पर, जादू जैसा तो कुछ होता ही नहीं है, अनी बोली| जादूगर तो लोगों को बुद्धू बनाता है| हाँ, दद्दू ने कहा, पर जादू के खेल में कई लोगों को बहुत मजा आता है और कुछ तो ऐसे भी होते हैं जो उस पर विश्वास भी कर लेते हैं| हाँ, धवल बोला, जब मैं बहुत छोटा था तो मुझे भी जादू सचमुच का लगता था| दद्दू ने कहा, फिर तुम लोग बीच में बोलने लगे, आगे बोलना नहीं, नहीं तो कहानी खत्म| नहीं बोलेंगे दद्दू, बच्चे एक स्वर में बोले| तो, अपने देश में भी ऐसे लोग थे, जिन्हें उस नेता की बातों पर भरोसा हो गया, उन्हें लगा कि वो जादूगर के समान सब कुछ ठीक कर देगा| पर, जादूगर का काम तो लोगों को बुद्धू बनाकर पैसे कमाना होता है| इसी तरह देश के धनी लोग भी ऐसे किसी व्यक्ति की तलाश में रहते हैं, जो जनता को बुद्धू बनाकर, उनके लिए धन कमाने का रास्ता बनाए| इसलिए देश के धनी लोगों ने भी चुनाव के समय प्रचार करने के लिए उस व्यक्ति की बहुत मदद की और उस नेता का पन्त देश का सबसे बड़ा पन्त बना और वह नेता देश का प्रधान बन गया|

इतना बोलने के बाद दद्दू थोड़ा रुके तो सोना तुरंत बोली, दद्दू, तो क्या उसने वायदे पूरे किये| कहाँ से करता? दद्दू ने कहा, उलटे वो हर महीने अपनी मन की बात बता-बता कर लोगों को और बुद्दू बनाने लगा| वैसे, एक बार उसने स्वीकार भी किया कि प्रधान बनने के पहले उसने जो कुछ कहा था, वह सब करना मुश्किल है और वह केवल लोगों को बहलाने के लिए बातें बनाता था| पर, जिन लोगों ने उसकी शेखीभरी बातों में आकर उसे चुना था, वो तब भी उसके भक्त बने रहे| उसने मंत्रीमंडल में भी वैसे सभी लोगों को रखा, जो उसे जादूगर समझते थे| इनका काम था रोज उसके गुणगान करना| अब जो कोई भी प्रधान या उसके मंत्रीमंडल के लोगों की गलती निकालता, उसे चुनने वाले भक्त, उस व्यक्ति के पीछे पड़ जाते| कभी गाली देते, कभी मार-पीट करते थे| पर, प्रधान को लोगों के बुद्धूपन पर भरोसा था और वह जानता था कि जब तक ऐसे लोग हैं, उसके शासन पर कोई खतरा नहीं है| उसके मंत्रीमंडल में एक कवि मक्खन प्रसाद भी थे| प्रधान ने एक दिन उनसे पूछा कि बताओ कि देश में कितने मूर्ख हैं? मक्खन प्रसाद ने जबाब दिया कि प्रत्येक 10 व्यक्तियों में कम से कम 3 लोग तो हैं| यह तो हम चुनकर आये हैं, इसी से स्पष्ट है| प्रधान संतुष्ट नहीं हुआ, बोला, अच्छा एक काम करो, देश के सबसे अधिक पांच मूर्ख व्यक्तियों को ढूंढकर लाओ| मक्खन प्रसाद, तुरंत उड़नखटोले में बैठकर सबसे बड़े पांच मूर्खों को ढूँढने के लिए निकल पड़े| वे बार-बार उड़नखटोले से मूर्खों की तलाश में नीचे झांकते जा रहे थे| अभी मक्खन प्रसाद  राजधानी के बाहर भी नहीं निकले थे कि उन्होंने देखा कि एक छोटे से घर में रहने वाला एक व्यक्ति चिड़ियों को दाना खिला रहा है और उसके बाजू में ही एक चार मंजिला इमारत में रहने वाला दूसरा व्यक्ति उस दाना खिलाने वाले को बड़े ध्यान से देख रहा है| मक्खन प्रसाद ने अपना उड़नखटोला उस चार मंजिला इमारत की छत पर उतरवाया और उस व्यक्ति से पूछा कि वह नीचे क्या देख रहा है? उस व्यक्ति ने जबाब दिया, माननीय, आप नीचे देखिये, वहाँ उस छोटे से मकान के आँगन में खड़ा व्यक्ति कितना मूर्ख है, वह चिड़ियों को उड़ना सिखा रहा है| मक्खन प्रसाद को पूरा भरोसा हो गया, यह तो मूर्खता में हमारा भी चाचा है, उन्होंने तुरंत उसे अपने उड़नखटोले में बिठा लिया और दूसरे मूर्ख की तलाश में निकल पड़े| 

कुछ देर उड़ने के बाद उन्होंने देखा कि नीचे एक नदी के किनारे एक व्यक्ति काँटा डालकर नदी से मछली पकड़ रहा है और पास ही कुछ दूरी पर कार में बैठा एक दूसरा व्यक्ति मछली पकड़ने वाले व्यक्ति को बड़े ध्यान से देख रहा है| मक्खन प्रसाद जी ने अपना उड़नखटोला वहां उतरवाया और कार में बैठे उस दूसरे व्यक्ति से पूछा कि भाई वह व्यक्ति तो मछली पकड़ रहा है, तुम यहाँ उसे देखते क्यों खड़े हो| उस दूसरे व्यक्ति ने कहा कि तुम्हें दिखाई नहीं देता क्या? वह मछली नहीं पकड़ रहा है, कितना मूर्ख है, वह तो मछलियों को तैरना सिखा रहा है| मक्खन प्रसाद खुश हो गए कि चलो ये भी मूर्खता में मेरा बड़ा भाई निकला और उन्होंने उसे भी प्रधान से मिलवाने के लिए उड़नखटोले में बिठा लिया| उड़ते उड़ते वे एक रेगिस्तान के ऊपर से गुजरे| उन्होंने नीचे देखा कि एक व्यक्ति ऊँट पर बैठकर रेगिस्तान में जा रहा है और एक दूसरा व्यक्ति उस ऊँट पर बैठकर जाते व्यक्ति को बहुत ध्यान से देख रहा है| उन्होंने तुरंत अपना उड़नखटोला नीचे उतरवाया और उस दूसरे व्यक्ति से पूछा कि वह वहां खड़े खड़े क्या कर रहा है? उस दूसरे व्यक्ति ने जबाब दिया कि देखो वह व्यक्ति जो रेगिस्तान में है कितना मूर्ख है, रेत में नाव चला रहा है| इस तरह, मक्खन प्रसाद को तीसरा मूर्ख भी मिल गया| पर, वे दिन भर घूमते रहे पर उन्हें चौथा और पांचवा मूर्ख नहीं मिला| वे थकहार कर एक जगह आराम करने के लिए रुके| कुछ देर बाद एक साधारण सा दिखने वाला व्यक्ति भी वहाँ से गुजाते हुए अपनी थकान उतारने वहाँ बैठा| उसने मक्खन प्रसाद के चेहरे पर चिंताएं देखीं तो उसने सुहानभुती दिखाते हुए चिंता का कारण पूछा| मक्खन प्रसाद ने उसे पूरी बात बताकर पूछा कि क्या तुम ऐसे किन्हीं दो मूर्खों को जानते हो? उस व्यक्ति ने कहा, हाँ, क्यों नहीं| मक्खन प्रसाद बोले जल्दी से उनका पता बताओ, मुझे आज ही सभी मूर्खों को ले जाकर प्रधान जी से मिलवाना है| उस साधारण से दिखने वाले व्यक्ति ने कहा, आप बिलकुल चिंता न करें, मुझे प्रधान जी के पास ले चलें, मैं वहीं बाकी दो से उनकी मुलाक़ात करवा दूंगा| 

मरता क्या न करता, मक्खन प्रसाद चारों को लेकर प्रधान के पास पहुंचे| प्रधान ने पांच की जगह चार लोगों के देखकर कहा कि मक्खन प्रसाद तुम्हें तो पांच महामूर्खों के लाने कहा था, पर, ये तो चार ही हैं| मक्खन प्रसाद बोले, माननीय, मूर्ख तो इनमें से तीन ही हैं, यह चौथा तो साधारण व्यक्ति है, यह कहता है कि यह बाकी दो मूर्खों को जानता है और केवल आपसे उनका परिचय कराएगा| उसके बाद मक्खन प्रसाद ने पहले तीन मूर्खों की कहानी बताई और राजा से उनका परिचय कराया| तीनों की मूर्खता से प्रधान बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें बहुत टेक्स माफी, नदियों का पानी मुफ्त इस्तेमाल करने, काला धन सफ़ेद करने की योजना जैसे ढेर सारे उपहार दिए| फिर, चौथे आदमी की ओर देखकर कहा, हाँ, अब तुम बतलाओ, चौथा और पांचवां मूर्ख कौन है? हाँ, पहले अपना नाम बताओ? चौथे आदमी ने कहा, माननीय, मेरा नाम अफलातून है| मैं एक आम आदमी हूँ| ठीक है, बतलाओ चौथा और पांचवां मूर्ख कौन है और कहाँ है, याद रखो, हमें देर बिलकुल पसंद नहीं है| चौथा व्यक्ति बोला, माननीय, चौथे मूर्ख आप है, प्रजा के हितों से जुड़े अनेक कार्यों के बकाया रहते, ऐसा बकवादी काम अपने मंत्री को सौंपा| और आप से भी बड़ा मूर्ख यह मंत्री है, जिसने इतना मूर्खतापूर्ण कार्य करने के लिए सरकारी पैसे का दुरुपयोग किया और उड़नखटोले पर बैठकर दिन भर घूमता रहा| इतना सुनना था कि प्रधान सहित सभी मंत्री, भक्त, अफलातून को सबक सिखाओ- अफलातून को सबक सिखाओ चिल्लाते उस आम आदमी को मारने दौड़ पड़े| कहानी खत्म करने के बाद दद्दू ने बच्चों की तरफ देखा तो सभी बच्चे एकसाथ चिल्लाए, दद्दू ये लेटेस्ट नहीं, लेटेस्ट की भी लेटेस्ट याने आज की कहानी है|

अरुण कान्त शुक्ला
18/12/2016                                                                      


Thursday, September 15, 2016

हिन्दी हेतु रुदन दिवस

कहीं पढ़ा था कि स्वतंत्रता पश्चात 15 अगस्त की सुबह जब एक पत्रकार ने गांधी से पूछा कि आप दुनिया से कुछ कहना चाहेंगे तो गांधी ने कहा कि जाओ और दुनिया से कह दो को गांधी अंगरेजी भूल गया|

उस पत्रकार ने यह बात पूरी दुनिया को बताई,पर, वह गांधी का यह सन्देश भारत में बताना भूल गया|

भारत सरकार को 1953 में पता चला कि भारत में तो लोग अंगरेजी के बजाय हिन्दी भूल रहे हैं तो तय किया गया कि प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को पूरे भारत में हिन्दी दिवस मनाया जाए ताकि लोगों को याद रहे कि हिन्दी भारत की ही एक भाषा है| 

स्वतन्त्र भारत की राजभाषा के प्रश्न पर 14 सितंबर 1949 को काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया जो भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343(1) में इस प्रकार वर्णित है:

[2] संघ की राज भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा। चूंकि यह निर्णय 14 सितंबर को लिया गया था। इस कारण हिन्दी दिवस के लिए इस दिन को श्रेष्ठ माना गया था। 
हम अब यह भूल चुके हैं और धड़ल्ले से शिक्षा से लेकर प्रत्येक स्तर पर अंगरेजी के गुलाम बन चुके हैं| 

अब 14 सितम्बर हिन्दी के लिए आंसू बहाने के उत्सव में बदल चुका है| इसलिए अब यह मांग उठनी चाहिए कि 14 सितम्बर का नाम हिन्दी दिवस से बदल कर "हिन्दी हेतु रुदन दिवस" कर दिया जाए| इससे देश का मान बढ़ेगा और हिन्दी को भी आत्मिक संतोष मिलेगा कि कम से कम उसके नाम पर एक दिन रोया तो जाता है| 


अरुण कान्त शुक्ला
14
सितम्बर, 2016