Thursday, September 15, 2016

हिन्दी हेतु रुदन दिवस

कहीं पढ़ा था कि स्वतंत्रता पश्चात 15 अगस्त की सुबह जब एक पत्रकार ने गांधी से पूछा कि आप दुनिया से कुछ कहना चाहेंगे तो गांधी ने कहा कि जाओ और दुनिया से कह दो को गांधी अंगरेजी भूल गया|

उस पत्रकार ने यह बात पूरी दुनिया को बताई,पर, वह गांधी का यह सन्देश भारत में बताना भूल गया|

भारत सरकार को 1953 में पता चला कि भारत में तो लोग अंगरेजी के बजाय हिन्दी भूल रहे हैं तो तय किया गया कि प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को पूरे भारत में हिन्दी दिवस मनाया जाए ताकि लोगों को याद रहे कि हिन्दी भारत की ही एक भाषा है| 

स्वतन्त्र भारत की राजभाषा के प्रश्न पर 14 सितंबर 1949 को काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया जो भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343(1) में इस प्रकार वर्णित है:

[2] संघ की राज भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा। चूंकि यह निर्णय 14 सितंबर को लिया गया था। इस कारण हिन्दी दिवस के लिए इस दिन को श्रेष्ठ माना गया था। 
हम अब यह भूल चुके हैं और धड़ल्ले से शिक्षा से लेकर प्रत्येक स्तर पर अंगरेजी के गुलाम बन चुके हैं| 

अब 14 सितम्बर हिन्दी के लिए आंसू बहाने के उत्सव में बदल चुका है| इसलिए अब यह मांग उठनी चाहिए कि 14 सितम्बर का नाम हिन्दी दिवस से बदल कर "हिन्दी हेतु रुदन दिवस" कर दिया जाए| इससे देश का मान बढ़ेगा और हिन्दी को भी आत्मिक संतोष मिलेगा कि कम से कम उसके नाम पर एक दिन रोया तो जाता है| 


अरुण कान्त शुक्ला
14
सितम्बर, 2016

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